संवाददाता।
कानपुर। नगर के घाटमपुर में सेठ सुखनंदन लाल ट्रस्ट कमेटी के द्वारा छ दिवसीय रामलीला का आयोजन किया गया। यहां पर चौथे दिन धनुष यज्ञ का मंचन किया गया। रामलीला में सभी पात्र व कलाकार गांव के ही रहते हैं, जिन्हें एक माह पहले से रिहर्सल करवाई जाती है। सभी पात्र बिना किसी अन्य प्रयोग के रामायण की चौपाई पर ही अभिनय करते हैं। यहां धनुष टूटते ही भगवान श्री राम के स्वरूप का मूर्छित हो जाना अपने आप में आश्चर्य है। रामलीला देखने आसपास गांवों से लोगो की भारी भीड़ जुटती है। सुरक्षा के लिए पुलिस बल मौजूद रहता है। घाटमपुर तहसील क्षेत्र के पतारा कस्बा स्थित सदर बाजार प्रांगण में विगत 300 सालों की तरह सेठ सुखनंदन लाल ट्रस्ट कमेटी के द्वारा छह दिवसीय रामलीला का आयोजन किया गया। ट्रस्ट कमेटी अध्यक्ष गोपाल गुप्ता ने बताया कि रामलीला में चौथे दिन धनुष यज्ञ का मंचन किया गया। जिसमें रामायण की चौपाई के आधार पर “लेत चढ़ावत खैचत गाढ़े। काहु न लखा देखि सबु थाढ़े। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुरी घोर कठोरा। चौपाई के साथ प्रभु श्री राम के स्वरूप ने अजगव धनुष को दो खंडों में विभाजित कर दिया। रामलीला मंचन के दौरान चौपाइयों के साथ धनुष टूटते ही श्रीराम स्वरूप बना बालक कुछ समय के लिए मूर्छित हो जाता। इस दौरान यहां पर पैर छूने के लिए भक्तों की कतार लग जाती है। लोगों की आस्था है, कि धनुष टूटते ही भगवान श्री राम की छवि कुछ समय के लिए भगवान श्री राम का स्वरूप बने बालक में आ जाती है। यहां पर आए भक्त शिवनारायण बाजपेई, आदित्य शर्मा, रज्जन पाठक से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वह कमेटी के सदस्य हैं। बताया कि हमारे बुजुर्गों से यह परंपरा चली आ रही है, भक्तों का मानना है कि धनुष टूटते ही श्रीराम की छवि कुछ देर के लिए यहां पर आती है। जिसके प्रभाव स्वरूप श्री राम का वेश धारण किए हुए बालक अपने आप एक मिनट के लिए मूर्छित हो जाता है। इस रामलीला से क्षेत्र के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। स्व सेठ सुखनंदन लाल ट्रस्ट कमेटी के सदस्य आदित्य शर्मा, रज्जन पाठक, बउवा जी, कल्लू शुक्ला कहते है, कि बुजुर्ग बताते थे, कि अजगव धनुष का निर्माण नेपाल के विदिशा से लाए गए कुश से किया गया था। यहां पर रामलीला का मंचन होने के बाद भी समय समय पर धनुष की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही धनुष को प्रतिवर्ष नया कपड़ा और गोटा लगाकर तैयार किया जाता है, जिससे धनुष आकर्षण का केंद्र बना रहता है।बताया गया कि जब से रामलीला की शुरुआत हुई थी, तब से यही धनुष अभी भी चल रहा है। रामलीला के साथ धनुष भी तीन सौ वर्ष पुराना हो गया हैं। ट्रस्ट कमेटी अध्यक्ष गोपाल गुप्ता ने बताया कि इस प्राचीन रामलीला में चौथे दिन धनुष यज्ञ को भगवान श्री राम व लक्ष्मण और मां सीता के स्वरूप को सोने के तार से बना हुआ मुकुट और सखियों को चांदी के जेवरात पहनाए जाते हैं। साथ ही कार्यक्रम में दरबान की लाठियां चांदी की होती हैं। वहीं मोरक्षल अन्य प्रभु से जुड़ी चीजें चांदी की धातु की बनी होती है। जो वर्ष में एक बार निकालकर लाई जाती है। जिसके बाद सभी को सुरक्षित लॉकर में रख दिया जाता है। कार्यक्रम के दौरान चांदी व सोने से सुसज्जित दरबार अपने आप में एक अलौकिक और मनमोहक दृश्य है। कार्यक्रम संयोजक रामजी गुप्ता ने बताया कि धनुष को तैयार किए गए स्थान पर उठाने से पहले पांच जनेऊ धारण करने वाले ब्राह्मण स्नान करते हैं। जिसके सभी बाद धोती व बनियान पहनकर धनुष और भगवान राम की पूजा अर्चना करने के बाद भगवान शिव का ध्यान करने के बाद धनुष को उठाकर कस्बा स्थित बाबा बैजनाथ धाम मंदिर के रास्ते सदर बाजार में पहुंचकर सुस्जित मिथलानगरी पर वेदी में रखते हैं। जिसके बाद सभी भगवान शिव की स्तुति करते हैं। मानो ऐसा प्रतीत होता है, की मिथला नगरी में वेदी पर धनुष रक्खा हुआ है। यहां पर चौथे दिन धनुष यज्ञ में लक्ष्मण परशुराम संवाद सुनने आसपास गांवों से लोगों की भारी भीड़ जुटती है। लगभग चार घंटे चले लक्ष्मण परशुराम संवाद ने लोगों का मन मोह लिया। संवाद के अंत में प्रभु श्री राम परशुराम जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उन्हें अपने स्वरूप की जानकारी देते है। जिसके बाद परशुराम के द्वारा “भाग्य की शुभ घड़ी, देखौ मोरे भाग्य की शुभ घड़ी” गायन के साथ अपने द्वारा की गई भूल स्वरूप अपनी गलती मानते है, जिसके बाद यहां पर रामलीला का समापन होता है। पतारा कस्बा निवासी आनंद शुक्ला उर्फ बउवा जी ने बताया की वह स्वयं नौ वर्ष भगवान श्री राम का अभिनय किया है। जिसके वह तीन वर्ष तक राजा जनक का अभिनय करते रहे। अब वह बच्चों को पात्र के लिए तैयार करते है। उन्होंने बताया की रामलीला में सभी पात्र गांव के ही होते है। बच्चो के द्वारा मिले अपने अभिनय का पूरी मेहनत के साथ निर्वाहन करते हैं।