कानपुर। सिंखों के दसवें गुरु गोविन्दर सिंह के जन्मोत्सव पर गुरुद्वारों में संगत की आस्था का सैलाब उमड़ पडा। गुरु गोविन्द सिंह का प्रकाशोत्सव बुधवार को कडाके के सर्दी के बाद भी धूमधाम से मनाया गया। गुरु गोविन्द सिंह के 357वें प्रकाशोत्सव को सिख समुदाय के लोगों ने भजन-कीर्तन के बीच पूरी आस्था के साथ धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर नगर स्थित गुरुद्वारा श्रीगुरु सिंह सभा में संगत के लोगों की ओर से बाबा का दरबार मोतीझील में सजाया गया, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा।
बुधवार को सुबह से ही धीरे-धीरे कर समुदाय के लोग गुरुद्वारा में एकत्रित होना शुरू हुए। दोपहर तक संगत के प्रत्येक सदस्यों की उपस्थिति के उपरांत कार्यक्रम की शुरुआत हुई। सर्वप्रथम संगत के एक-एक सदस्यों ने गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष मत्था टेक बेहतर स्वास्थ्य, परिवार के कुशलता व सुख-समृद्धि की अरदास की। तत्पश्चात बाहर से आए कथा व कीर्तन जत्था के ज्ञानियों ने भक्ति गीतों के माध्यम से गुरु गोविन्दक सिंह के जीवन पर प्रकाश डालना शुरू किया। उनके भक्ति गीतों व गुरुवाणी के पाठ के बीच सुर व ताल के संगम में श्रोता पूरे दिन गोते लगाते रहे। वहीं, भजन के बीच-बीच में श्रद्धालुओं द्वारा वाहे गुरु-वाहे गुरु का उद्घोष किया जाता रहा। जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल आदि जयकारों से वहां का वातावरण भक्ति के रंग में रंग गया। इस अवसर पर देर शाम संगत की महिलाओं एवं छोटे-छोटे बच्चों द्वारा विविध कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी की गई, जिसे देख दर्शक भावविभोर हो गए। बुधवार को मोतीझील में सुबह से शाम तक मेले जैसा नजारा रहा। लोग बच्चों और अन्य फैमिली मेंबर्स के साथ पहुंचे। ट्रैफिक जाम और पार्किंग प्रॉब्लम के कारण उनको थोड़ी परेशानी भी हुई। उन्होंने मोतीझील के बाहर गाड़ी पार्क कर फैमिली के साथ पैदल दूरी नापी। दिन भर धन धन नानक तेरी वडिआई, नानक नाम ध्या लो जी गुरु दिहाड़ा आया है, एक बाबा अकाल रूप, तुमरी शरण तुमरी सजन सहेले .. आदि शबदों से मोगा नगरी गुंजायमान होने लगी। श्रद्धालुओं ने गुरुद्वारों में नतमस्तक होकर पावन बाणी का श्रवण किया। संगत ने पंगत में बैठकर गुरु के लंगर का प्रसाद ग्रहण किया। गुरु गोविन्द सिंह के पावन प्रकाश पर्व को लेकर गुरुद्वारा काहन कौर, गुरुद्वारा नामदेव भवन, गुरुद्वारा कलगीधर साहिब, गुरुद्वारा सरदार नगर, गुरुद्वारा सिंह सभा, गुरुद्वारा छेवीं पातशाही सहिब अलग-अलग गुरुद्वार साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पाठ के भोग डाले गए। वहीं कथावाचकों ने कथा के माध्यम से गुरु की बाणी का यश गायन किया। श्रद्धालुओं ने गुरुद्वारों में नतमस्तक होकर पावन बाणी का श्रवण किया। संगत ने पंगत में बैठकर गुरु के लंगर का प्रसाद ग्रहण किया।