संवाददाता।
कानपुर। शनिवार शाम को ससुरा में मांगिले अन्न धन लक्ष्मी, नैहर सहोदर जेठ भाय हे छठी मइया..’ और ‘केरवा जे फरेला घवद से ओहपे सुग्गा मेड़राय..’ गीतों के बीच खरना व्रत का पारण रोटी-खीर और रसावल से किया गया। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो गया। सोमवार को उगते सूर्य के दर्शन के साथ होगा। आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। खाये नहाये के बाद शनिवार शाम खरना व्रत का पारण किया गया। इस व्रत की शुरुआत लौकी, कद्दू, चने की दाल आदि खाने के बाद हुई थी। उसका पारण शाम को गन्ने के रस में बने चावल या गुड़ में बने चावल, गाय के दूध से बनी खीर आदि से किया गया। व्रती महिलाओं ने इससे पहले छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए गीत गाए। डॉ. सन्ध्या ठाकुर के मुताबिक वैसे तो छठ अब सिर्फ बिहार का ही प्रसिद्ध लोकपर्व नहीं रह गया है। इसका फैलाव देश-विदेश के उन सभी भागों में हो गया है, जहां इस प्रदेश के लोग बस गए हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने से इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। ये देवी सभी बच्चों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी आयु देती हैं। षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है। इन्हें ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है, जो निसंतानों को संतान देती हैं। आज भी देश के बड़े भाग में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का चलन है।शनिवार शाम खरना का पारण करने के बाद से जो व्रत शुरू होता है वह पूरी तरह निर्जला होता है। इसके बाद से न तो किसी प्रकार का अन्न ग्रहण किया जाता है और न जल। आज रविवार शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद सोमवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद करीब 36 घंटे के व्रत का पारण होगा। छठ का व्रत एक तरह से पर्यावरण की रक्षा का भी संदेश देता है। जैव विविधता का इससे अच्छा उदाहरण नहीं मिलता। महिलाओं ने घरों में ‘मइया ए गंगा मइया, मांगिलां हम वरदान…’ जैसे गीत गाए। डॉ. सन्ध्या ठाकुर बताती हैं कि डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य घर की छत पर पानी के बड़े टब में खड़े होकर भी दे सकते हैं। जो लोग यह कहते हैं कि नहर, नदी या कृतिम तालाब तक जाना अनिवार्य है तो ऐसा नहीं है।