प्रदूषित जल का आंकड़ा मानव के लिए खतरनाक
संवाददाता।
कानपुर। नगर में गंगाजल पीने को छोड़िए, नहाने लायक भी नहीं बचा है। यही नहीं, कई जगहों पर पानी इतना खराब हो गया है कि फिल्टर तक नहीं किया जा सकता। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट में ये चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। सीपीसीबी के जल गुणवत्ता प्रबंधन के डायरेक्टर व विभाग प्रमुख अजीत विद्यार्थी ने बताया, ”10 जुलाई, 24 जुलाई और 22 अगस्त को गंगाजल की सैंपलिंग कराई गई थी। जिसकी रिपोर्ट अब आई है। कानपुर के बिठूर से फतेहपुर के बीच गंगा का घाट कई जगहों पर बेहद प्रदूषित मिला है। ज्यादातर घाटों पर कोविड कॉल के बाद गंगा के जलस्तर में तेजी से प्रदूषण बढ़ा है।” अजीत विद्यार्थी ने बताया कि कानपुर के 27 और उन्नाव के 2 नालों की सैंपलिंग का टारगेट रखा गया था। मगर, मानसून में 20 नालों के पास से ही गंगाजल को सैंपल के लिए कलेक्ट किया जा सका। इसमें गंगा के 18 और गंगा की सहायक पांडु नदी के 2 नालों के पास से सैंपलिंग की गई थी।रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा के पानी में पीएच का लेवल भी तेजी से बढ़ रहा है। शुक्लागंज के अलावा नरौरा, गढ़, फर्रुखाबाद, बिठूर, फतेहपुर में भी पीएच लेवल कई जगहों पर 8 को पार कर रहा है। सबसे बेहतर पानी का पीएच-7 होना चाहिए। इससे कम होने पर पानी अम्लीय और ज्यादा होने पर पानी खारा (क्षारीय) हो जाता है। इसका जलीय जीवजंतु और तत्वों पर असर पड़ता है। गंगा किनारे बसे कानपुर के जाना गांव के पास पीएच सबसे अधिक 8.07 पाया गया। बुढ़ियाघाट नाला के पास गंगा का जल बेहद प्रदूषित मिला। यहां गंगाजल में कलर की मात्रा 500 हैजन, बीओसी का स्तर 580 मिलीग्राम प्रति लीटर और सीओडी की मात्रा 920 मिलीग्राम प्रति लीटर मिली, जो मानक से ज्यादा है। असल में जल में मौजूद बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों द्वारा इस्तेमाल होने वाली ऑक्सीजन खपत को दिखाती है। बीओडी जितनी अधिक होती है, नदी में उतनी ही तेजी से ऑक्सीजन की कमी होती है। मानक के मुताबिक 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होना चाहिए। ज्यादा सीओडी की मात्रा स्किन के लिए घातक गंगाजल में बीओडी की मात्रा ज्यादा होने से इसमें रहने वाले जंतुओं के लिए सांस लेने में दिक्कत बढ़ती जाती है। यदि कोई व्यक्ति उसमें खड़ा भी होता है, तो उसकी स्किन को नुकसान पहुंचेगा। जल में 250 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम सीओडी का लेवल होना चाहिए। मानक के अनुसार, प्रति 100 मिली लीटर पानी में 500 से ज्यादा टोटल कोलिफॉर्म नहीं होना चाहिए। यानी गंगाजल में 500 तक जीवाणु हैं, तो उसमें स्नान कर सकते हैं। 5,000 से अधिक है, तो उस पानी को फिल्टर करना भी संभव नहीं है। प्रदूषित जल का आंकड़ा मानव के लिए खतरनाक है। फीकल कोलिफॉर्म गंगाजल में बैक्टीरिया के स्तर को मापता है। मानक के मुताबिक, गंगा जल में पचास हजार बैक्टीरिया प्रति सैकड़ा मिली लीटर होना चाहिए। जल में इसके बढ़ने से पानी में बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ती है।