संवाददाता।
कानपुर। 2जी एथेनॉल के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने पर राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर और भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ संयुक्त रूप से काम करेगा। पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए दोनों संस्थान मिलकर अब इस पर काम करेंगी। देश को 2025 तक पेट्रोल में 20% की दर से मिश्रण करने के लिए लगभग 10 हजार मिलियन लीटर एथेनॉल की आवश्यकता होगी। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. रसप्पा विश्वनाथ ने एनएसआई का बुधवार को दौरा किया। उन्होंने एनएसआई के निदेशक नरेंद्र मोहन और अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इथेनॉल निर्माण पर चर्चा की। दोनों संस्थानों का लक्ष्य गन्ने की कोई से एथेनॉल के उत्पादन के लिए कम लागत वाली तकनीकी को विकसित करना है। खोई का उपयोग वर्तमान में बॉयलर को जलाने के लिए ईंधन के रूप में किया जा रहा है। एनएसआई के निदेशक नरेंद्र मोहन ने कहा कि चीनी कारखाने में आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख मीट्रिक टन खोई की बचत हो रही है, जिसका कोई उपयोग नहीं है। लेकिन इसका उपयोग एथेनॉल के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। खोई में मौजूद सेल्युलोसिक एथेनॉल में परिवर्तित किया जाना और इसलिए इस प्रकार बने एथेनॉल को 2 जी के अलावा इसे सेल्युलोसिक एथेनॉल के रूप में भी जाना जाता है। नरेंद्र मोहन ने कहा कि अन्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध सस्ते कच्चे माल और फसलों के अवशेष पर अपने अध्ययन पर हम विस्तार करेंगे। ऐसा करने से गेहूं के भूसे, चावल के भूसे और कपास के डंठल आदि के उपयोग से पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से संबंधित मुद्दों को भी हल करने में मदद मिलेगी।