संवाददाता।
कानपुर। नगर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर ने जी प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स और केमोकाइन रिसेप्टर डी6 के अध्ययन के साथ बायोमेडिकल अनुसंधान में एक सफलता हासिल की है, जिससे कैंसर और मस्तिष्क संबंधी विकार जैसे अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग और सिजोफ्रेनिया के संभावित उपचार के नये विकल्प मिले हैं। शोधकर्ताओं ने रिसेप्टर्स के परमाणु विवरण की कल्पना की। इस ऐतिहासिक कार्य को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल, साइंस में प्रकाशित होने के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। यह शोध जीपीसीआर जीव विज्ञान प्रयोगशाला, आईआईटी कानपुर की अनुसंधान प्रो. अरुण कुमार शुक्ला ने अपनी टीम के साथ किया। आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर एस गणेश ने कहा, “यह अनूठा शोध लक्षित चिकित्सा में एक नए युग के द्वार खोलता है जो दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए कैंसर और न्यूरोलॉजिकल स्थितियों का समाधान प्रदान कर सकता है। ये बीमारियां, जो अत्यधिक पीड़ा और आर्थिक बोझ का कारण बनती हैं, इन निष्कर्षों के आधार पर प्रभावी उपचार का एक नया युग विकसित हो सकता है। इस शोध परियोजना की सफलता दुनिया भर के वैज्ञानिकों के साथ हमारे सफल सहयोग का भी प्रमाण है। इस परियोजना में आईआईटी कानपुर की टीम ने जापान, कोरिया गणराज्य, स्पेन और स्विट्जरलैंड के शोधकर्ताओं के साथ काम किया। जी प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) मस्तिष्क कोशिकाओं की सतह पर छोटे एंटेना की तरह होते हैं जो उन्हें संचार करने में मदद करते हैं और मस्तिष्क के कई कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जब ये रिसेप्टर्स ठीक से काम नहीं करते हैं, तो मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संचार में समस्याएं आती हैं। इससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियां होती हैं। इससे इन बीमारियों में लक्षण और प्रगति देखी जाती है। इसी तरह, केमोकाइन रिसेप्टर डी6 प्रतिरक्षा प्रणाली में कार्य करता है और सूजन की प्रतिक्रिया में शामिल होता है। कैंसर में, रिसेप्टर ट्यूमर के वातावरण को प्रभावित कर सकता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं कैसे बढ़ती हैं और फैलती हैं, उसे प्रभावित करता है। आईआईटी कानपुर के नए शोध के निष्कर्षों से इन रिसेप्टर्स के कामकाज को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। अल्जाइमर जैसी स्थितियों के लिए नए चिकित्सीय दृष्टिकोण और लक्षित उपचार का विकास होगा, जो दुनिया भर में 50 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करता है। कैंसर से प्रतिवर्ष 10 मिलियन से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है। इस शोध के नतीजे अब नई दवा जैसे अणुओं के विकास की सुविधा प्रदान करेंगे, जिन्हें पशु मॉडल में उनकी चिकित्सीय क्षमता के लिए परीक्षण किया जा सकता है। प्रो. अरुण कुमार शुक्ला ने बताया कि रिसेप्टर्स की विस्तृत त्रि-आयामी छवियां बनाने के लिए क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) नामक एक उच्च तकनीक विधि का उपयोग किया। इससे उन्हें आणविक स्तर पर रिसेप्टर्स की 3डी छवियों का विस्तार से अध्ययन करने की अनुमति मिली, जिससे रोग की स्थिति पैदा करने वाले इन रिसेप्टर्स के साथ समस्याओं को ठीक करने के लिए नई दवा जैसे अणुओं की पहचान करने और डिजाइन करने में मदद मिली। वैश्विक सहयोग में दुनिया भर के शोधकर्ताओं ने इस शोध परियोजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए आईआईटी कानपुर के साथ हाथ मिलाया। शोध दल में टोक्यो, जापान से फुमिया सानो, वतरू शिहोया, ओसामु नुरेकी, बार्सिलोना, स्पेन से टोमाज स्टेपन्यूस्की, जाना सेलेंट, बेसल, स्विट्जरलैंड से मोहम्मद चामी, कोरिया गणराज्य के सुवोन से लोंघन डुआन और का यंग चुंग शामिल थे।