October 18, 2024
  • संजीव कुमार भटनागर

काम क्रोध मोह मद तुम्हारे, मन से उनका जाना|
रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||

राम सिया लक्ष्मण छोड़ चले, अयोध्या थी उदासी|
वन वन फिरे वो चौदह बरस, आँखें सबकी प्यासी||
राज धर्म को निभा चले वो, त्याग करे सुख सारा|
लंका विजय किए बनवासी, गूंज उठा जग सारा||
सत्य धीरता राम लिए हैं, तिमिर मन से हटाना|
रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||

नारी का सम्मान जहाँ था, ऐसी इक लंका थी|
सीता की रक्षा वो करती, नहीं कभी शंका थी||
मानव वानर संग चले तो, सेना राम अपारा|
सागर ने भी शीश झुकाया, पुल बन पार उतारा||
मन में वो छवि लिए सिया की, राह विजय की पाना|
रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||

कितने बाण चलाये तुमने, कितने अवगुण मारे|
वीर धीर ज्ञान लिए दस सिर, अहंकार से हारे||
मन का रावण जिंदा जब तक, राम नाम तुम भूले|
रावण राम लड़ाई मन में, सत्य जीत को छूले||
विजय पर्व है फिर से आया, अंतस जब पहचाना|
रावण पर विजय कहाँ होगी, मर्म न इसका जाना||

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