संजीव कुमार भटनागर
एक दिन मनाऊँ कैसे आज
तू जानता मेरे दिल के राज़,
हर दिन तेरे नाम किया है
दिवस नहीं जीवन दिया है|
शोभित नहीं मित्रता दिवस से
यह सजे बिन रक्त शरीर से
दिलों का होता है इसमें राज़
मित्रता नहीं दिवस की मोहताज़|
मित्रता है इक अनमोल रत्न
नहीं तौल सका जग का धन
अमीरी गरीबी न जात पांत
प्यार का है अनोखा बंधन|
रिश्ते नातों की दीवार नहीं
इसमें जीत और कोई हार नहीं,
कुर्बान कर देता वो जीवन सारा
दोस्ती से बड़ा कोई उपहार नहीं|
अजीब से हैं ये मेरे रिश्ते प्यारे
मिले धरा पर हैं जन्नत से न्यारे,
कोई मिले अनजानी राह पर
कोई बचपन से चले संग हमारे|