January 18, 2025

आ स. संवाददाता  

कानपुर।  महाकुंभ की शुरुआत के दूसरे दिन 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व है। इस बार ग्रह, नक्षत्र और पूर्ण महाकुंभ के संयोग से मकर संक्रांति का पर्व भी महापर्व बन गया है। 

14 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मंगल पुष्य योग भी बन रहा है। जो कि बेहद शुभ योग माना जा रहा है। खास बात यह है कि 19 साल बाद ऐसे  दुर्लभ संयोग में मकर संक्राति का पर्व मनाया जाएगा। जिसमें दान, पुण्य, आध्यात्मिक कार्यों से 100 साल पूर्व तक के पापों से मुक्ति मिलेगी। 

ज्योतिषाचार्य मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि मकर संक्रांति का पुण्य काल 14 जनवरी को सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शुरू होगा और शाम 5 बजकर 37 मिनट पर समाप्त होगा।
मकर संक्रांति का महापुण्य काल 14 जनवरी को सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। यह दोनों ही समय स्नान और दान के लिए बेहद शुभ है।
खास बात यह है कि 144 वर्ष बाद पड़ने वाले महाकुंभ के दुर्लभ संयोग में मनाई जाने वाली मकर संक्रांति का महापर्व किसी इंसान के जीवन में दोबारा नहीं आएगा। 144 वर्षों बाद अद्भुत संयोग में हो रहे पूर्ण महाकुंभ में स्नान, दान का करोड़ गुना फल मिलेगा। क्योंकि ऐसा अद्भुत संयोग वर्षों बाद बनेगा। मकर संक्रांति के पर्व पर गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलेगी और अक्षय पुण्य की प्राप्ति से मोक्ष मार्ग के द्वार खुलेंगे।
कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और नक्षत्रों की विशिष्ट स्थिति के आधार पर किया जाता है। कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट स्थिति में होते हैं, जब बृहस्पति वृष राशि में और सूर्य मकर राशि व चंद्रमा और अन्य ग्रह भी शुभ स्थानों पर होते हैं, तब महाकुंभ का समय बनता है। 

यह संयोग हर 144 वर्षों के बाद आता है। इस संयोग को विशेष रूप से शुभ और दिव्य माना जाता है। हर 144 साल में एक दुर्लभ खगोलीय घटना होती है, जो कुंभ मेले को विशिष्ट बना कर महाकुंभ बना देती है।
हिंदू ज्योतिषीय गणनाओं में 12 और 144 वर्षों के चक्र का महत्व बताया गया है। 12 साल के चक्र में एक सामान्य कुंभ मेला आयोजित होता है और 12 कुंभ मेलों के बाद विशेष महाकुंभ आयोजित होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि महाकुंभ में स्नान और पूजन  करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे देवताओं और ऋषियों ने भी अत्यधिक पवित्र माना है। यह माना जाता है कि हर 144 साल में अमृत कलश से विशेष ऊर्जा पृथ्वी पर उतरती है, जिससे यह मेला और अधिक पवित्र माना जाता है।