January 18, 2025

आ स. संवाददाता 
कानपुर।
  144 साल बाद हो रहे महाकुंभ में हर कोई आस्था की डुबकी लगा कर अपने आप को कृतार्थ करने की चाह में है। दोबारा ऐसा मौका किसी भी इंसान के जीवन में नहीं आने वाला। जिस कारण महाकुंभ में लाखों लोग इस महापर्व के साक्षी बनने को बेकरार है। वहीं कई लोग ऐसे भी है जो श्रद्धा के इस महापर्व में जुड़ कर पुण्य तो कमाना चाहते है, लेकिन किन्हीं कारणों से पहुंच नहीं सकते।
समस्याओं व दुविधाओं के कारण इस महाकुंभ में नहीं जा पाने पर परेशान होने की बात नहीं है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक कुछ मंत्रों के जाप से ही आप महाकुंभ के अमृत जल से खुद को सराबोर कर पुण्य का लाभ ले सकते है। आत्मिक, मानसिक शुद्धि के साथ आर्थिक लाभ भी ले सकते हैं।
हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक समागम, अध्यात्मिक शुद्धि, धार्मिक उपासना के केंद्र महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। पौष माह की पूर्णिमा से शुरू होने वाले इस समागम में 6 शाही स्नान होंगे, जो कि 13 जनवरी, 14 व 29 जनवरी, 3 फरवरी, 12 व 26 फरवरी को होंगे। 

महापंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान करेंगे। इसके बाद अन्य साधु, संत और  आमजन महाकुंभ में डुबकी लगा कर पुण्य का लाभ लेंगे।

अनेकों बच्चे, बुजुर्ग व असहाय लोग ऐसे भी है, जो इस  महाकुंभ में जाने में सक्षम नहीं है। ज्योतिषाचार्य नितिशा मल्होत्रा के मुताबिक महाकुंभ के अमृत जल में स्नान का पुण्य घर बैठे ही कमाया जा सकता है। पीतल, तांबे, चांदी या सोने के कलश में गंगाजल की कुछ बूंदों के साथ जल से भर कर चांदी का एक सिक्का कलश में डाल दें। इसके बाद तुलसी पत्र डाल कर पूरी आस्था के साथ ऊं

गंगा, जमुना, सरस्वते: नमः का जाप करके इस अभिमंत्रित जल से स्नान करिए।इस जाप को करके आप इस अमृत जल का स्नान कर महाकुंभ के पुण्य को कमा सकते हैं। 

सिद्धनाथ धाम के अरुण चैतन्यपुरी ने बताया कि भागवत में कहा गया है कि गंगा 100 योजन तक अपने नाम का प्रभाव रखती हैं। अगर आप मानसिक रुप से गंगा का आह्वान करके अपने जलपात्र में उन्हें स्थापित कर हर हर गंगे का उच्चारण कर तीनों पवित्र नदियों को याद कर स्नान करते हैं, तो उसका अविस्मरणीय लाभ मिल सकता है। चैतन्यपुरी ने बताया कि कलयुग में मानसिक पूजा का विशेष लाभ मिलता है, भगवान शंकराचार्य ने भी इसकी महिमा का वर्णन किया है। शारीरिक रुप से, आर्थिक रुप अक्षम व्यक्ति इसका लाभ ले सकते है। गंगा का मानसिक रुप से आह्वान करने से अप्रत्यक्ष शक्तियां आकर्षित होती  हैं। जिससे अमृत जलपात्र में आ जाता है।

ज्योतिषाचार्याें की मानें तो समुद्र मंथन की कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की चार बूंदे धरती पर चार स्थानों पर गिरी थीं, ये स्थान हरिद्वार, उज्जैन, नासिक व प्रयागराज हैं। जहां पर अर्धकुंभ, महाकुंभ व पूर्णकुंभ का मेला आयोजित किया जाता है। पौष माह की पूर्णिमा में यह बूंदे धरती पर गिरी थीं, जिस कारण महाकुंभ की शुरूआत इस तिथि पर ही होती है।