December 7, 2025

• चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पृथ्वी पर करेगा अमृत वर्षा।

संवाददाता 

कानपुर। नगर ही नहीं बल्कि देशभर में शरद पूर्णिमा का पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मंगलवार को मनाया जायगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह रात खास मानी जाती है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पृथ्वी पर अमृत वर्षा करता है।शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि जो भी उनका ध्यान करते हैं, उन्हें धन, धान्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

ब्रज क्षेत्र में इस दिन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ महारास किया था। इस आयोजन को आज भी वृंदावन और मथुरा में भव्य रूप से मनाया जाता है।

इस दिन की सबसे विशेष परंपरा है खीर बनाकर उसे चाँदनी में रखना। लोगों का विश्वास है कि चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो खीर में समाहित हो जाते हैं। इस खीर को अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस रात की ठंडी चंद्रप्रकाश में रोग नाशक शक्तियाँ होती हैं।

शरद पूर्णिमा के दिन कई लोग निर्जला व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हैं। मंदिरों में भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। विशेष रूप से महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

खगोलशास्त्रियों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और पूरी तरह उज्ज्वल दिखाई देता है। इससे चंद्रमा की रोशनी सामान्य पूर्णिमा से कहीं अधिक प्रभावी होती है।

शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और स्वास्थ्यवर्धक अवसर भी है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में चंद्रमा की महिमा, माँ लक्ष्मी की कृपा और सामूहिक उत्सव की भावना का प्रतीक है। आज की रात भक्तजनों के लिए विशेष महत्त्व रखती है और चाँदनी में नहाई यह रात हर किसी के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाने का संदेश देती है।