
आ स.संवाददाता
कानपुर। प्रदेश के पूर्व का सबसे प्रसिद्ध शहर गोरखपुर का टेराकोटा कला की एक अनमोल धरोहर माना जाता है। एक जिला एक उत्पाद में टेराकोटा अपनी पहचान अलग ही बना चुका है जो न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्धि पा रहा है। इस माटी से बने उत्पादों की मांग भी धीरे –धीरे छोटे और बडे घरों में सामान्य से अधिक होने लगी है। अब तो नगर के कुछ कारीगर वहां से मिटटी लाकर यहां पर उत्पादों का निर्माण करने का सफल प्रयास कर रहें हैं। इस दीपावली, नई कलाकृतियों के साथ यह और भी आकर्षक बन गया है। टेराकोटा की ये अद्भुत हस्तशिल्प बड़े शहरों में छोटे बडे घरों की सजावट में चार चांद लगाने का काम कर रहे हैं। दीपावली पर घरों को सजाने की परंपरा रहती है। ऐसे में टेराकोटा के लालटेन, हाथी मेज, पौधे रोपने के बर्तन की भी खूब मांग बढी है। मनी प्लांट रोपने के लिए बर्तन की मांग भी छा गयी है। कई व्यापारी टेराकोटा की कलाकृतियां लेकर उसमें झालर आदि लगाकर उसकी खूबसूरती और बढ़ा देते हैं, जिसे खूब पसंद किया जाता है।इसकी मिट्टी की सुगंध और कलाकारों की मेहनत हर एक कलाकृति में झलकती है। दीपावली नजदीक आते ही सभी कलाकार इस माटी से शिल्परकारी करने में व्यस्त हो जाते हैं। यहां विशेष तरह की कलाकृतियां तैयार की जाती हैं। साधारण दीयों की जगह विशेष प्रकार के दीयों पर फोकस अधिक किया जा जाता है। स्टैंड दीया, कलश दीया की भी बाहर के व्यापारियों में जबरदस्त मांग है। ये अलग बात है कि साधारण मिटटी से बने दीए और कलाकृतियों पर उतनी अधिक फिनिशिंग नही आ पाती है जबकि टेराकोटा से निर्मित वस्तुओं में फिनिशिंग उसकी खूबसूरती निखार देती है। शहर के कल्याणपुर,गोल चौराहा,साकेत नगर, गोविन्द नगर, श्याम नगर आदि क्षेत्रों में सडक किनारे ही लगभग सैकडों शिल्पकार दिन-रात कलाकृतियां तैयार करने में जुटे हैं।आमतौर पर आसानी से तैयार हो जाने वाले दीये अधिकतर लोग नहीं बनाना पसन्द करते हैं। हालांकि इसके उत्पाद साधारण मिटटी से बने उत्पादों की अपेक्षा थोडे महंगे अवश्य होते है लेकिन उतनी ही मजबूती भी होती है जिसके चलते लोगों की पहली पसन्द होते हैं। ओडीओपी नियमों के तहत सरकार की ओर से दिए गए सांचे के बाद खाली समय में कुछ साधारण व एकल डिजाइन दीये तैयार किए जा रहे हैं लेकिन अधिकतर शिल्पकारों का फोकस हाथ से काम करने में होता है। इनके दीये ऐसे होते हैं कि रखने के लिए जगह की तलाश नहीं करनी होगी। दीप प्रज्जवलन के दौरान जो स्टैंड लगाया जाता है, उसी तरह के स्टैंड दो दर्जन दीयों के साथ यहां के शिल्पकार तैयार कर लेते हैं।गोल चौराहे पर बीते 6 सालों से टेराकोटा से बने उत्पादों की दुकान चलाने वाले दिनेश प्रजापति बतातें हैं कि अब इसके उत्पादों की मांग घरों में अधिकता से हो रही है। उत्पादों में अच्छी फिनिशिंग के चलते लोगों को इन्हेी रंग से सजाना नही पडता तो उसे ले जाते हैं। दूसरे शिल्पकार विनीत मंडल के मुताबिक अब तो गणेश -लक्ष्मी की मूर्तियों के आर्डर आने लगे हैं यहां गणेश व लक्ष्मी की लगभग एक फीट लंबी मूर्ति भी बनाई जाती है। मूर्तियां देखने में इतनी आकर्षक होती हैं मानो बोल पड़ेंगी। 200 से 500 रुपये कीमत वाली छोटी मूर्तियां कुछ शिल्पकार ही बनाते हैं और उनकी मांग स्थानीय स्तर पर ही होती है। अधिकतर लोग मूर्तियों के साथ दीये भी जोड़ते हैं जिससे वह और भी सुन्दंर दिखायी देती हैं।