December 8, 2025

संवाददाता
कानपुर।
सरसौल विकासखंड के कस्बा सरसौल में बाटस चौदस का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। बुंदेली धरती की यह परंपरा गत कई वर्षों से चली आ रही है, जिसमें टेसू-झांझी विवाह की अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है।

यह परंपरा ब्रज क्षेत्र में प्रचलित है, जिसे उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड की धरती सहेज रही है। इसका संबंध महाभारत में अपने कटे सिर से युद्ध देखने वाले बर्बरीक की अधूरी प्रेम कहानी को पूरा कराने से है।
मान्यता है कि यह भविष्य के नव जोड़ों के लिए विवाह का मार्ग प्रशस्त करती है। टेसू-झांझी का विवाह शरद पूर्णिमा के दिन धूमधाम से आयोजित होता है। इस क्षेत्र में टेसू-झांझी के विवाह के बाद ही शहनाई बजने की शुरुआत होती है।
सरसौल, कमलापुर, नगर भेवली, खजुरिया, हाथीगांव और महाराजपुर गांवों में इस परंपरा को आज भी जीवंत रखा गया है। एक समय था जब नन्हे-मुन्ने लड़के और लड़कियां टेसू-झांझी लेकर घर-घर से निकलते थे और गीत गाकर चंदा मांगते थे।
सरसौल कस्बे के बुजुर्ग चंद्रशेखर और त्रिभुवन बाबू दुबे बताते हैं कि यह एक प्राचीन परंपरा है, जिसे आज के युवाओं ने वृहद रूप दिया है।

लोगों में यह मान्यता भी प्रचलित है कि यदि किसी लड़के की शादी में अड़चन आ रही हो, तो उसे तीन साल तक झांझी का विवाह कराना चाहिए। इसी प्रकार, यदि किसी लड़की की शादी में दिक्कत आ रही हो, तो उसे टेसू का विवाह कराने का संकल्प लेना चाहिए। ऐसा करने से उनकी शादी हो जाती है।