
संवाददाता
कानपुर। बिल्हौर तहसील के ग्राम मनोह में करीब 18 साल पुराने भूमि आवंटन घोटाले का बड़ा खुलासा हुआ था। एडीएम न्यायिक चंद्रशेखर की अदालत ने वर्ष 2007 में ऊसर-बंजर सरकारी जमीन पर किए गए ढाई सौ बीघा भूमि के 141 पट्टों को फर्जी करार देते हुए निरस्त कर दिया। कोर्ट ने माना कि उस समय के ग्राम प्रधान और अन्य जिम्मेदारों ने गरीबों और भूमिहीनों की जगह नौकरीपेशा, कारोबारी और अपने स्वजनो के नाम पर जमीन आवंटित की थी।
ग्राम मनोह निवासी रवीन्द्र कुमार और अन्य ग्रामीणों ने इस घोटाले की शिकायत की थी। उनका आरोप था कि वर्ष 2007 में भूमि प्रबंधन समिति की जो बैठक कागजों में दिखाई गई, वह वास्तव में हुई ही नहीं थी। जांच में पाया गया कि समिति की कार्यवाही में ग्राम प्रधान, सचिव और अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर फर्जी थे।
सुनवाई के दौरान शासकीय अधिवक्ता नीरज सिंह सेंगर ने अदालत को बताया कि यह पूरा मामला सामूहिक भ्रष्टाचार का उदाहरण है। पात्र गरीबों को वंचित रखकर अपात्र और प्रभावशाली लोगों को जमीन दी गई, जो कानून के विरुद्ध है। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 198(4) के तहत कार्यवाही को उचित ठहराया और सभी 141 पट्टों को निरस्त करने का आदेश दिया।
अदालत के आदेश के बाद मनोह गांव की लगभग ढाई सौ बीघा जमीन को मुक्त घोषित कर दिया गया है। अब पूरी भूमि को पुनः सरकारी रिकार्ड में दर्ज किया जाएगा, ताकि भविष्य में पात्र लाभार्थियों को नियमों के अनुसार सही तरीके से जमीन आवंटित की जा सके।






