आ स. संवाददाता
कानपुर। नगर में बछवाछ का त्योहार धूमधाम के साथ मनाया गया। महिलाओं ने सुबह से ही स्नान करके व्रत रखा। जिसके बाद महिलाओं ने गाय और बछड़े की पूजा कर अपनी संतान के दीर्घायु होने की कामना की। इस पर्व के चलते गाय और बछड़े की पूजा की गई है।
हिंदू मान्यताओ के अनुसार कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। गाय-बछड़े की पूजा के लिए समर्पित इस पर्व को लोक भाषा में बछबारस या ओक द्वादशी भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु एवं हर विपत्ति से उनकी रक्षा एवं प्रसन्नता की कामना करने के लिए यह व्रत रखती हैं। महिलाओं ने सूप सजाकर गाय और बछड़े की पूजा अर्चना कर उनसे आशीर्वाद लिया।
प्राचीन काल में एक राजा ने एक तालाब बनवाया था, पर तालाब में पानी नहीं भरा। राजा ने ज्योतिषी से इसका कारण पूछा। तो उसने बताया कि अगर आप अपने नाती की बलि देकर यज्ञ करें तो तालाब पानी से भर जायेगा। जिसके चलते राजा ने यज्ञ में अपने नाती की बलि चढ़ा दी। बलि देने के बाद तेज बारिश होने लगी। जिससे तालाब पानी से भर गया। पानी से भर जाने पर राजा ने तालाब का पूजन किया।
घर पर राजा की नौकरानी ने एक गाय के बछड़े को काटकर साग बना दिया। जब राजा ने नौकरानी से पूछा तो नौकरानी ने कहा कि मैंने उसकी सब्जी बना दी है। राजा ने कहा कि अरे पापिन तूने यह क्या कर दिया। राजा ने उस बछड़े के मांस की हांडी को जमीन में गाड़ दिया। शाम को जब गाय वापस आई तो उस जगह को अपने सींगो से खोदने लगी। जहां पर बछड़े के मांस की हांडी गाड़ी गई थी। गाय ने उसे बाहर निकाला। उस हांडी में से गाय का बछडा और राजा का नाती दोनों जीवित निकले। उस दिन से अपने बच्चों की सलामती के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई।