December 7, 2025

संवाददाता
कानपुर।
उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर फिर से हलचल है। अबकी बार नया नाम है चंद्रशेखर आजाद रावण। नगीना से सांसद बनने के बाद अब उन्होंने मेरठ में दावा किया है कि 2000 मुसलमानों ने उनकी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की सदस्यता ली है। इस दावे के बाद यूपी की राजनीति में बहस छिड़ गई है। क्या रावण मुसलमानों के लिए नया विकल्प बन पाएंगे या यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है?
समाजवादी पार्टी के विधायक हसन रूमी ने कहा है कि हर दल अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश करता है। लेकिन सच्चाई यह है कि मुसलमानों का विश्वास अगर किसी ने जीता, तो वो मुलायम सिंह यादव थे। उन्होंने हमेशा संविधान को सर्वोपरि रखा, जात-पात से ऊपर उठकर काम किया।
रूमी ने आगे कहा कि नगीना सीट आरक्षित थी, इसलिए वहां के मुस्लिम मतदाताओं को लगा कि चंद्रशेखर उनके हित में हैं, इसलिए उन्हें जिताया गया। पश्चिम यूपी में मुस्लिम और दलित वोटर आज भी अपनी नई पहचान खोज रहा है।
लेकिन चंद्रशेखर का 2000 मुसलमानों के पार्टी ज्वाइन कराने का दावा ज़्यादा बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया लगता है। यह आंकड़ा 200 भी हो सकता है। रूमी ने कहा कि ओवैसी जैसे बड़े मुस्लिम चेहरे भी अभी तक मुस्लिम समाज को न्याय नहीं दिला पाए, तो रावण जैसे नाम तो बहुत छोटे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश मंत्री अनस उस्मानी ने कहा, आजादी के बाद से हर चुनाव में मुस्लिम समाज को सिर्फ इस्तेमाल किया गया। जब वोट चाहिए होता है तो याद किया जाता है, फिर भुला दिया जाता है। उन्होंने कहा कि अब मुसलमान जागरूक हो रहा है और समझ रहा है कि कौन उसका इस्तेमाल करता है और कौन उसका हितैषी है।
कांग्रेस, सपा या बसपा किसी ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया। आज बीजेपी सरकार में योजनाओं का लाभ बिना भेदभाव के दिया जा रहा है। तीन तलाक कानून हो या वक्फ बोर्ड में सुधार ये सब भाजपा ने किया।
अनस उस्मानी का कहना है कि अब मुसलमानों को दूसरों के पीछे जाने के बजाय खुद नेतृत्व तैयार करना चाहिए।उन्होंने सपा और बसपा पर निशाना साधते हुए कहा, आज़म खान, इरफान सोलंकी या नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं का हश्र सबके सामने है। इसलिए मुसलमानो को अब खुद अपना नेता बनना चाहिए।
एआईएमआईएम के पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य उमर मारूफ ने कहा, चाहे कांग्रेस हो, सपा हो, बसपा हो या अब चंद्रशेखर रावण सबने मुसलमान को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है।
उन्होंने कहा कि मेरठ में 2000 मुस्लिमों के जुड़ने का दावा जमीनी हकीकत से दूर है। 70–75 सालों से मुसलमानो ने दूसरों को लीडर बनाया, खुद की लीडरशिप नहीं खड़ी की। जब आज़म खान या नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेता खड़े हुए, तो उन्हें किनारे कर दिया गया।
मारूफ का कहना है कि मुसलमानों को वोट देने तक सीमित कर दिया गया है। लीडरशिप की बात करते ही उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है।
पश्चिम यूपी में मुस्लिम आबादी कई सीटों पर निर्णायक है। चंद्रशेखर रावण की कोशिश इस वर्ग में पैठ बनाने की है, लेकिन यह राह आसान नहीं है। जहां एक ओर सपा ने परंपरागत मुस्लिम-यादव समीकरण पर पकड़ बनाई है।
वहीं भाजपा सबका साथ, सबका विकास के नारे के जरिए अल्पसंख्यकों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि रावण की यह नई रणनीति मुस्लिम समाज में कितनी पकड़ बना पाती है। अथवा यह भी एक और राजनीतिक प्रयोग बनकर रह जाएगा।