आ स. संवाददाता
कानपुर। महाकुंभ से पहले कानपुर में गंगा को शुद्ध करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं। गंगा में गिरने वाले 7 बड़े नाले और पांडु नदी में गिरने वाले 6 बड़े नालों को बायोरेमिडिएशन तकनीक के जरिए शुद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है। गंगा के पानी में पीएच और ऑक्सीजन बढ़ाने के लिए नगर निगम ने तकनीक पर काम शुरू कर दिया है।
नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक इसमें करीब 2 करोड़ रुपए खर्च होंगे। रोजाना पानी की मॉनिटरिंग कराई जा रही है। एचबीटीयू और पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी भी जांच कर रहे हैं।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा को शुद्ध करने के लिए गंगा और पांडु नदी पर दो हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए थे। इसमें सबसे बड़े नाले सीसामऊ को भी टैप किया गया। लेकिन टैप नाले भी आए दिन रुक-रुककर गंगा में समा रहे हैं। महाकुंभ से पहले जल निगम, नगर निगम ने व्यवस्थाओं को मजबूत करना शुरू कर दिया है।
बायोरेमिडिएशन के बाद पानी के पीएच, टीएसएस, सीओडी और बीओडी की जांच की जाती है। इन पैरामीटर्स पर रिपोर्ट मानक के मुताबिक आने पर तकनीक का प्रयोग सफल माना जाता है।
बायोरेमिडिएशन टेक्नोलॉजी में जैविक विधि से नाले के पानी को साफ किया जाता है। इस टेक्नोलॉजी में कुछ ऐसे घास और पौधे होते हैं, जिनकी जड़ों में बैक्टीरिया पैदा होते हैं। बायोरिमेडिएशन टेक्नोलॉजी में केना घास समेत अन्य घास को नालों में लगाया जाता है।
बायोरेमेडिएशन प्रक्रिया बैक्टीरिया, आर्क बैक्टीरिया, यीस्ट, कवक, शैवाल जैसे सूक्ष्मजीवों की सहायता से की जाती है। इनके कल्चर को उस स्थान से पहले नाले के गंदे पानी में डाला जाता है। जहां नाला नदी में गिरता है।
बैक्टीरिया नाले की गंदगी को अवशोषित कर लेते हैं अर्थात उसे खा लेते हैं। इसके बाद शोधित हुआ पानी गंगा में जाता है। इसके लिए बिजली या अतिरिक्त जमीन की जरूरत नहीं होती।