December 13, 2024

मुस्लिम घर से निकले तामपत्र से हुई थी खोज।

अष्टमी के दिन भक्तों की संख्या 50 हजार से भी अधिक पार कर जाती है।

कानपुर। शारदीय नवरात्रि पर नगर के देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ रही है। नगर में देवियों के कई अति प्रसिद्ध मंदिर है। किदवई नगर एम ब्लॉक इलाके में स्थित करीब 1400 वर्ष पुराना जंगली देवी मंदिर शहर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। कहा जाता है कि मां भगवती के दिव्य स्वरूपों में से एक जंगली देवी मां की प्रतिमा शयन आरती के समय मुस्कुराती है। दिन में तीन बार मां के अलग-अलग स्वरूप के दर्शन होते हैं।
यह जंगली देवी मंदिर शहर का  एकमात्र मंदिर है, जिसका इतिहास अभिलेखों में दर्ज है। मंदिर ट्रस्ट ने इसे पुरातत्व विभाग को सौंप दिया है। शारदीय व चैत्र नवरात्र पर्व पर इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। नवरात्रि के मौके पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
श्री जंगली देवी मंदिर ट्रस्ट के महामंत्री व पुजारी विजय पांडेय ने बताया कि किदवई नगर निवासी मो. बकर अपने मकान का निर्माण करा रहे थे, नींव की खोदाई के दौरान उन्हें एक उर्दू भाषा में लिखा हुआ ताम्रपत्र मिला।उस पत्र के अनुसार बताई गई उनके मकान के बाहर लगे नीम के पेड़ की खोह में मां जंगली देवी की प्रतिमा विराजमान थी। ताम्रपत्र को उन्होंने प्रतिमा की पूजा अर्चना करने वाले आसपास के लोगों को सौंप दिया था।
वर्ष 1979 में आए तूफान में नीम का पेड़ गिरने के बाद श्रद्धालुओं ने चंदा कर मठिया में मूर्ति की स्थापना की थी, जिसके बाद उसी वर्ष मंदिर ट्रस्ट का निर्माण किया गया था। ट्रस्ट ने लखनऊ पुरातत्व विभाग को ताम्रपत्र सौंपा था, जिसकी एक प्रति मंदिर ट्रस्ट के पास आज भी मौजूद है। ताम्रपत्र में मंदिर के इतिहास का वर्णन किया गया है।
मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों व श्रद्धालुओं की माने तो मंदिर में सुबह, दोपहर व शाम के समय मां जंगली देवी प्रतिमा के तीन स्वरूप बदलते है। बताया जाता है कि सुबह व दोपहर को आरती के बाद पट बंद कर दिए जाते है।
शाम 8:30 बजे होने वाली शयन आरती में मां भगवती का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई पड़ता है। बताया गया  कि जंगली देवी 2.45 कुंतल चांदी के सिंहासन पर विराजमान हैं। मंदिर प्रांगण में करीब 45 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है।
महामंत्री विजय पांडेय ने बताया कि शारदीय व चैत्र नवरात्र में मंदिर प्रांगण को भव्य रूप से सजाया जाता है। मंदिर में भव्य पंडाल के साथ ही फूलों व झालरों की सजावट की जाती है। उन्होंने बताया कि इस नवरात्र पर नौ दिनों तक मंदिर में मां की प्रतिमा व गर्भगृह को 1.25 कुंतल फलों से सजाया जाएगा।
पहले दिन अनार के फलों का श्रंगार होगा, इसके बाद अगले दिनों में सेव, केला, संतरा समेत तरह-तरह के अन्य फलों से सजावट की जाएगी। अगले दिन श्रंगार में लगे फल भक्तों में प्रसाद रूप में  वितरित किए जाएंगे।
मंदिर ट्रस्ट ने फलों से श्रंगार के लिए कोलकाता से 7 कारीगर भी बुलाये गये हैं, जों सजावट का काम करेंगे। नौ दिनों तक मंदिर में रोजाना कन्या भोज का आयोजन भी कराया जाएगा।
मंदिर पुजारी के मुताबिक नवरात्र के 6वें दिन मंदिर में 10 हजार नकदी का खजाना वितरण किया जाता है। मान्यता है कि मां के दरबार से खजाना ले जाने वाले श्रद्धालुओं के भंडार हमेशा भरे रहते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर में नवरात्र के दौरान रोजाना करीब 20 हजार से अधिक की संख्या में श्रद्धालु दर्शन को आते हैं, वहीं अष्टमी के दिन इनकी संख्या 50 हजार से भी पार कर जाती है।