बलिदानी के रक्त में, आज़ादी का रंग
भगत, आज़ाद, जोश था, स्वतंत्रता के संग।
देते बिस्मिल राजगुरु, आज़ादी आह्वान।
दिल्ली चलो सघोष को, कहे सुभाष महान।
बोध कर्तव्य का करो, रख आज़ादी मान
छांव तिरंगे की तले, बढ़े देश सम्मान।
आज़ादी के वीर थे, लिए तिरंगा शान,
अंडमान की जेल में, गूंजे थे बलिदान।
वस्तु स्वदेशी का चलन, तिलक ने दिया ज्ञान
लाला जी के रक्त ने, रची आज़ादी तान।
नए नियम कानून थे, करते विरोध नीत
फांसी चढ़ते वीर थे, आज़ादी की प्रीत।
लिए तिरंगा हाथ में, चले वीर संग्राम
राह बलिदान में लिखा, आज़ादी का नाम।
याद उन्हें करते सभी, आजादी था कर्म
भारत स्वतंत्र हो गया, बना तिरंगा धर्म।
आज़ादी की रोशनी, लिए हौंसला संग
भारत जग गुरु बन रहा, मिले तीन जब रंग।
संजीव कुमार भटनागर